नर्क से कम नहीं प्रिया कैम्प में जिंदगी
"इस नर्क में मैं पिछले 40 सालों से रह रहा हूं। मेरे दो बच्चे हैं।एक 8 साल का है और एक 12 साल का है। मेरी एक चाय समोसे की टपरी है। मैं मूलतः बिहार के वैशाली जिले का हूं। गांव में भूखे मरने की नौबत आ गई थी इसलिए काम की तलाश में दिल्ली आया। कुछ दिनों तक काम की तलाश में इधर उधर भटका, सुबह से शाम तक लेबर चौक पर खड़ा रहता था लेकिन काम आसानी से मिलता नहीं था। परेशान होकर इस हाईवे पर एक चाय की टपरी खोली। इस से दो जून का खाना हो जाता है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे भी इस नर्क में रहें लेकिन मैं उन्हें पढ़ा नहीं पा रहा हूं।" 48 वर्षीय राम बाबू अपनी झुग्गी के बाहर बहते नाले की ओर देख कर बोले और फफक कर रोने लगे। राम बाबू ओखला की एक झुग्गी बस्ती(प्रिया कैम्प) में अपने परिवार के साथ रहते हैं। प्रिया कैम्प में लगभग 250 झुग्गियां हैं। बस्ती में बिजली के तार और हर झुग्गी के बाहर नंबर प्लेट, इस नर्क में प्रशासन की मौजूदगी का एहसास कराते हैं। इस झुग्गी बस्ती के अधिकतर लोग दिल्ली के पास के शहरों से पलायन करके आए हैं। गरीबी और बेरोजगारी के कारण इस नर्क में रहने को मजबूर हैं।